आयकर रिटर्न मे कुछ पूछे जाने वाले प्रश्न । ITR Filing Questions

आज भारत के लगभग 3 प्रतिशत लोग आयकर की श्रेणी मे आते है मतलब उनकी इतनी आय होती है कि उनको अपना आयकर रिटर्न दाखिल करना पड़ता है, आपको बात देना उचित होगा कि सभी को आयकर कैसे calculate करे ये पता नहीं होता और कुछ बहुत ही basic questions होते है जो सबको जानना चाहिए तो हुमने नीचे दिए गए लेख मे यही बताने की कोशिश की है, ये नीचे दिया गया केवल जानकारी मात्र है कोई सलाह नहीं है, तो आइए पूरा पढ़ते है -
1- आयकर क्या है?
यह प्रत्येक व्यक्ति की आय पर भारत सरकार द्वारा लगाया जाने वाला एक कर है। आयकर कानून को शासित करने वाले उपबंध आयकर अधिनियम, 1961 में दिए गए हैं।
2-आयकर का प्रशासनिक ढांचा क्या है?
भारत सरकार के राजस्व कार्य वित्त मंत्रालय द्वारा प्रबंधित होते हैं। वित्त मंत्रालय ने आयकर, संपत्ति कर आदि जैसे प्रत्यक्ष करों के प्रशासन का कार्य केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) को सौंपा है। सीबीडीटी, वित्त मंत्रालय में राजस्व विभाग का एक अंग है।
सीबीडीटी प्रत्यक्ष करों की नीति तैयार करने और आयोजना बनाने के लिए आवश्यक संसाधन प्रदान करता है और आयकर विभाग के माध्यम से प्रत्यक्ष कर कानून को प्रशासित भी करता है। इस प्रकार, सीबीडीटी के नियंत्रण व देखरेख में आयकर कानून, आयकर विभाग द्वारा प्रशासित किया जाता है।
3-आयकर के प्रयोजन हेतु किसी व्यक्ति की आय के लिए ध्यान में रखी जाने वाली अवधि क्या है?
आयकर, किसी व्यक्ति की वार्षिक आय पर लगाया जाता है। आयकर कानून के तहत, वर्ष, 1 अप्रैल से प्रारंभ और अगले कैलेंडर वर्ष के 31 को मार्च को समाप्त होने वाली अवधि है। आयकर कानून में वर्ष को-(1) पिछले वर्ष और (2) निर्धारण वर्ष के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
जिस वर्ष के दौरान आय अर्जित की जाती है, वह पिछला वर्ष कहलाता है और जिस वर्ष में आय पर कर प्रभारित किया जाता है, उसे निर्धारण वर्ष कहा जाता है।
उदाहरण के तौर पर, 1 अप्रैल 2021 से 31 मार्च 2022 की अवधि के दौरान अर्जित आय को पिछले वर्ष 2021-22 की आय के रूप में माना जाता है। पिछले वर्ष 2021-22 की आय पर, अगले वर्ष अर्थात् निर्धारण वर्ष 2022-23 में कर प्रभारित किया जाएगा।
4- आयकर का भुगतान किसे करना होता है?
आयकर का भुगतान प्रत्येक व्यक्ति को करना होता है। जैसा कि शब्द 'व्यक्ति' को धारा 2(3) के अंतर्गत आयकर अधिनियम के तहत परिभाषित किया गया है, शब्द 'व्यक्ति' के दायरे में प्राकृतिक के साथ ही साथ कृत्रिम व्यक्तियों को भी शामिल किया गया है।
आयकर प्रभारित करने के प्रयोजन के लिए, शब्द 'व्यक्ति' में व्यक्ति, हिंदू अविभाजित परिवार [एचयूएफ,] व्यक्तियों का संघ [एओपी] व्यक्तियों का निकाय[बीओआई,] फर्म, एलएलपी, कंपनी स्थानीय प्राधिकरण व कोई भी कृत्रिम न्यायिक व्यक्ति शामिल हैं जो उपरोक्त में से किसी के तहत नहीं आते।
इस प्रकार, शब्द 'व्यक्ति' की इस परिभाषा से यह देखा जा सकता है कि इसमें एक प्राकृतिक व्यक्ति से अलग, अर्थात्, एक व्यक्ति, किसी भी प्रकार की कृत्रिम इकार्इ, आयकर अदा करने के लिए उत्तरदायी हैं।
5- कर देयता के निर्धारण के लिए क्या एक व्यक्ति की आवासीय स्थिति, उसे मिलने वाली आय के लिए प्रासंगिक है?
हाँ, कर देयता के निर्धारण के लिए आय अर्जित करने वाले एक व्यक्ति की आवासीय स्थिति उसके हाथ में आने वाली ऐसी आय से अत्यधिक प्रासंगिक है।
एक व्यक्ति के हाथों, किसी भी आय की कर देयता निम्न दो बातों पर निर्भर करती है:
(1) आयकर कानून के अनुसार व्यक्ति की आवासीय स्थिति।
(2) उसके द्वारा अर्जित आय की प्रकृति,
इसलिए, आवासीय स्थिति, आय कर देयता के निर्धारण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
6-क्या, भारतीय नागरिकता रखने वाले व्यक्ति को आयकर प्रभारित करने के प्रयोजन हेतु भारत का निवासी माना जाएगा?
वित्त अधिनियम, 2020 के माध्यम से आयकर अधिनियम, 1961 की नई धारा 6(1क) की शुरूआत की गई है। नया प्रावधान बताता है कि एक भारतीय नागरिक केवल तभी भारत का निवासी समझा जाएगा यदि पिछले वर्ष के दौरान उसकी कुल आय, विदेशी स्त्रोतों से आय को छोड़कर, रू. 15 लाख से अधिक हो। इस प्रावधान के लिए, विदेशी स्त्रोतों से आय का अर्थ आय जो भारत से बाहर अर्जित या उपार्जित होती है (भारत में स्थापित पेशे या एक नियंत्रित व्यापार से प्राप्त आय को छोड़कर)
हालांकि, ऐसा व्यक्ति केवल तभी भारतीय नागरिक समझा जाएगा जब वह अपने निवास या रहने या इसी प्रकार के किसी अन्य मापदंड के कारण किसी राष्ट्र या क्षेत्राधिकार में कर देने के लिए जिम्मेदार न हो।
इसलिए, निर्धारण वर्ष 2021-22 से, रू. 15 लाख (विदेशी स्त्रोतों को छोड़कर) से अधिक की कुल आय अर्जित करने वाले भारतीय नागरिक को भारत में निवासी होना समझा जाएगा यदि वह किसी राष्ट्र में कर देने के लिए जिम्मेदार न हो।
7- आयकर कानून के तहत मान्यता प्राप्त विभिन्न आवासीय स्थितियां क्या हैं?
आयकर प्रभारित करने के उद्देश्य से, एक व्यक्ति और एक एचयूएफ की आवासीय स्थिति निम्न रूप में वर्गीकृत की जा सकती है:
(1) निवासी और भारत में सामान्य तौर पर निवासी
(2) निवासी परंतु भारत में सामान्य तौर पर निवासी नहीं
(3) अनिवासी
व्यक्ति और एचयूएफ के अलावा, अन्य व्यक्तियों को निवासी या अनिवासी के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। ऐसे व्यक्तियों के लिए निवासी स्थिति के बजाय सामान्य तौर पर निवासी नहीं है, स्थिति का प्रयोग किया जाता है।
8- यदि मेरी आय पर भारत के साथ ही साथ विदेश में कर लगाया जाता है तो, क्या मैं दोहरे कराधान के कारण किसी भी प्रकार के राहत का दावा कर सकता हूं?
हाँ, यदि आप की आय पर भारत के साथ ही विदेश में भी कर लगाया जाता है तो आप आय के संबंध में राहत का दावा कर सकते हैं। राहत या तो भारत सरकार द्वारा उस देश के साथ (यदि कोई हो) दोहरा कराधान बचाव समझौते के प्रावधानों के अनुसार प्रदान की जाती है या विदेशी देश में भुगतान किए गए कर के संबंध में अधिनियम की धारा 91 के अनुसार प्रदान की जाती है।
9- एक व्यक्ति को भारत के निवासी के रूप में कब माना जाएगा?
आयकर कानून के प्रयोजन हेतु एक व्यक्ति को भारत का निवासी माना जाएगा यदि वह निम्न में से किसी एक शर्त को संतुष्ट करता है:
(1) विचाराधीन वर्ष के दौरान वह 182 दिन या उससे अधिक की अवधि के लिए भारत में था, या
(2) विचाराधीन वर्ष के दौरान वह 60 दिन या उससे अधिक की अवधि के लिए भारत में था और तत्काल पूर्व के पिछले 4 वषोर्ं के दौरान 365 दिन या उससे अधिक की अवधि के लिए भारत में था।
10-यदि आयकर कानून के तहत कोर्इ व्यक्ति किसी भी एक वर्ष के लिए निवासी बन जाता है तो क्या उसे बाद के वषोर्ं के लिए भी निवासी माना जाएगा?
नहीं, आवासीय स्थिति की जांच प्रत्येक वर्ष की जानी है। इस प्रकार, एक व्यक्ति एक वर्ष में निवासी हो सकता है और बाद के वषोर्ं में अनिवासी हो सकता है।
11- मैं यह कैसे जान सकता हूं कि, एक कंपनी निवासी है या अनिवासी?
एक कंपनी को घरेलू कंपनी के तौर पर समझा जाता है यदि भारतीय कंपनी अधिनियम के अंतर्गत, निगमित हो। एक विदेशी कंपनी एक 'घरेलू ' कंपनी हो सकती है यदि उसके मामलों का नियंत्रण व प्रबंधन पूरी तरह से भारत में किया जाता है।
12-पेशे का अर्थ क्या है?
पेशे का अर्थ है किसी के कौशल व ज्ञान का स्वतंत्र रूप से दोहन। पेशे में व्यवसाय भी शामिल है। कुछ उदाहरण- विधि, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, वास्तुशास्त्र, लेखाशास्त्र, तकनीकी परामर्श, आंतरिक सजावट, कलाकार, लेखक, आदि हैं।
13-व्यवसाय की वही खाता कहां और कितनी अवधि के लिए रखी जानी होती हैं?
सभी वही खाता व संबंधित दस्तावेज, व्यवसाय के मुख्य स्थल पर रखे जाने चाहिए अर्थात् जहां व्यवसाय या पेशा आम तौर पर किया जाता है। इन दस्तावेजों को प्रासंगिक निर्धारण वर्ष की समाप्ति से न्यूनतम छह साल के लिए, यानी प्रासंगिक वर्ष की समाप्ति से कुल 7 वित्तीय वर्ष के लिए, संरक्षित किया जाना चाहिए। हालांकि जब निर्धारण दुबारा किया जाता है तो आयकर विभाग छह वर्ष के बाद भी मामलों को पुन: खोल सकता है और इसलिए ऐसी स्थिति में यह सलाह दी जाती है कि उपरोक्त अवधि के बाद भी लेखा बही को बनाए रखा जाना चाहिए। सभी बही खातों और अन्य दस्तावेजों जिनको निर्धारण दुबारा करते समय सुरक्षित और अनुरक्षित रखा गया है तो उसे तब तक सुरक्षित या अनुरक्षित रखना चाहिए जबतक ऐसी दुबारा कार्रवाई पूरी न हो।
14- मेरे लिए अपने व्यवसाय की लेखा बही बनाए रखना काफी मुश्किल है। क्या आयकर कानून के तहत ऐसी कोर्इ योजना है जिसके तहत मैं एक पूर्वनिर्धारित दर पर आय घोषित कर सकता हूं और लेखा बही के रखरखाव से राहत मिल सकती है?
हाँ, आयकर अधिनियम की धारा 44कघ में निर्धारित प्रकल्पित कराधान योजना के अनुसार, एक व्यक्ति या एचयूएफ या पार्टनरशिप फर्म के रूप में एक निर्धारिती इस योजना को अपना सकता है और लेखा बही के रखरखाव से और लेखा परीक्षा से भी राहत मिल जाती है। यदि एक निर्धारिती प्रकल्पित कराधान योजना को अपनाता है, तो उसे अपनी आय कारोबार के 8% (8% से अधिक की आय भी घोषित की जा सकती है) की दर पर घोषित करनी होगी। यह योजना निर्धारिती द्वारा अपनायी जा सकती है यदि व्यापार से होने वाला कारोबार या सकल प्राप्तियां 1,00,00,000 रुपये से अधिक नहीं हैं। धारा 44कघ के तहत निर्धारित प्रकल्पित कराधान योजना, निम्नलिखित व्यवसायों में से किसी में संलग्न निर्धारिती द्वारा नहीं अपनायी जा सकती हैं:
• धारा 44कक के तहत निर्दिष्ट कोर्इ भी पेशा करने वाला एक निर्धारिती।
• एक निर्धारिती जो एजेंसी व्यवसाय कर रहा है।
•. एक निर्धारिती जो कमीशन या दलाली की प्रकृति का आय अर्जित कर रहा है।
• एक निर्धारिती जो धारा 44कड़ में निर्दिष्ट काम पर रखने या माल गाड़ी को पट्टे पर या किराए पर देने में सलग्न है।
यदि निर्धारिती उक्त योजना अपनाना नहीं चाहता है, तो वह कम दर पर (अर्थात् 8% से कम) आय घोषित कर सकता है। ऐसे मामले में, यदि उसकी आय, कर के दायरे में न आने वाली अधिकतम राशि से अधिक है तो उसे बही खाता बनाए रखना आवश्यक होगा और ऐसे लेखों को लेखापरीक्षित (Audit) कराना होगा।
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