वीर सावरकर की जीवनी | उपलब्धियाँ, विचारधारा और विवाद

वीर सावरकर की जीवनी | उपलब्धियाँ, विचारधारा और विवाद

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भागूर गांव में एक चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम दामोदर पंत और माता का नाम यशोदा (या राधाबाई) था। सावरकर के दो भाई (गणेश, जिन्हें बाबाराव भी कहा जाता था, और नारायण) और एक बहन (मैना बाई) थीं।
सावरकर ने प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में प्राप्त की और 1901 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। उसी वर्ष उनका विवाह यमुनाबाई से हुआ। 1902 में वे पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज में बीए की पढ़ाई के लिए दाखिल हुए।

क्रांतिकारी गतिविधियाँ और संगठन
सावरकर का क्रांतिकारी रुझान बचपन से ही दिखने लगा था। 1899 में, मात्र 16 वर्ष की आयु में, उन्होंने 'मित्र मेला' नामक गुप्त संगठन बनाया, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन का विरोध करना था। बाद में, इस संगठन का नाम बदलकर 'अभिनव भारत' कर दिया गया। अभिनव भारत का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश राज का उन्मूलन और भारतीय गौरव की पुनर्स्थापना था।

1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में सावरकर ने पुणे में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। वे बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल जैसे नेताओं से भी प्रेरित थे। 1906 में, श्यामजी कृष्ण वर्मा की छात्रवृत्ति पाकर वे कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए।

लंदन प्रवास और साहित्यिक योगदान
लंदन में सावरकर ने 'फ्री इंडिया सोसाइटी' की स्थापना की और भारतीय छात्रों को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम पर उन्होंने 'The Indian War of Independence' नामक पुस्तक लिखी, जिसे उसके क्रांतिकारी विचारों के कारण ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था।
1909 में उन्होंने 'बार एट लॉ' की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसी दौरान मदनलाल ढींगरा द्वारा विलियम कर्जन वायली की हत्या हुई, जिसमें सावरकर का नाम भी जुड़ा और ब्रिटिश सरकार की नजर में वे और अधिक संदिग्ध बन गए।

गिरफ़्तारी, कारावास और क्षमादान याचिकाएँ
1910 में सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने पेरिस से गिरफ्तार कर भारत लाया। रास्ते में उन्होंने मार्से (फ्रांस) के बंदरगाह पर भागने की कोशिश की, लेकिन फिर से पकड़ लिए गए। उन्हें दो आजीवन कारावास (कुल 50 वर्ष) की सजा सुनाई गई और अंडमान के कुख्यात सेल्युलर जेल भेज दिया गया।

old image of Veer Savarkar

सेल्युलर जेल में सावरकर को अत्यंत कठोर परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। उन्होंने वहां रहते हुए कई कविताएँ, लेख और विचार लिखे। जेल में रहते हुए उन्होंने ब्रिटिश सरकार को क्षमादान याचिकाएँ भी भेजीं, जिसे लेकर बाद में काफी विवाद हुआ। समर्थकों का मानना है कि यह एक रणनीति थी, जबकि आलोचक इसे समझौता मानते हैं।

1924 में, लगभग 14 साल की सजा के बाद, उन्हें इस शर्त पर रिहा किया गया कि वे रत्नागिरी में रहेंगे और राजनीतिक गतिविधियों से दूर रहेंगे।

हिंदुत्व विचारधारा और समाज सुधार
रत्नागिरी में रहते हुए सावरकर ने 'हिंदुत्व' शब्द को परिभाषित किया और 'Hindutva: Who is a Hindu?' नामक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी। उन्होंने हिंदू समाज की एकता, जातिवाद के विरोध और सामाजिक सुधारों पर जोर दिया।
सावरकर ने परिवर्तित हिंदुओं को पुनः हिंदू धर्म में लाने के लिए आंदोलन चलाया और मंदिर प्रवेश, छुआछूत उन्मूलन जैसे विषयों पर भी कार्य किया। वे तर्कवाद, मानवतावाद और यथार्थवाद के समर्थक थे और धार्मिक रूढ़ियों का विरोध करते थे।

राजनीतिक जीवन
1937 से 1943 तक सावरकर हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे। इस अवधि में उन्होंने "राजनीति का हिंदूकरण और हिंदू धर्म का सैन्यीकरण" जैसे नारे दिए। वे अपने तेज राष्ट्रवादी विचारों के लिए प्रसिद्ध थे और मुस्लिम लीग की विभाजनकारी राजनीति के प्रबल विरोधी थे।

स्वतंत्रता के बाद, वे सक्रिय राजनीति से दूर हो गए, लेकिन हिंदू राष्ट्रवाद की विचारधारा पर उनका प्रभाव बना रहा।

साहित्यिक योगदान
सावरकर एक बहुमुखी लेखक, कवि और नाटककार थे। उनकी प्रमुख रचनाओं में शामिल हैं:

'The Indian War of Independence, 1857'

'Hindutva: Who is a Hindu?'

'हिंदू-पद-पादशाही'

'हिंदुत्व दर्शन'

'छत्रपति शिवाजी'

'महानायक'

'सिक्स ग्लोरियस एपॉक्स ऑफ इंडियन हिस्ट्री'

विवाद
क्षमादान याचिकाएँ
सेल्युलर जेल में रहते हुए सावरकर ने ब्रिटिश सरकार को कई बार क्षमादान याचिकाएँ भेजीं। आलोचकों ने इसे उनकी क्रांतिकारी छवि के विपरीत बताया, जबकि समर्थकों ने इसे एक रणनीतिक कदम कहा।

गांधी हत्या में नाम
1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद सावरकर पर भी साजिश का आरोप लगा। उन्हें गिरफ्तार किया गया, लेकिन सबूतों के अभाव में अदालत ने बरी कर दिया। बाद में कपूर आयोग (Kapur Commission) ने सावरकर की संलिप्तता की संभावना जताई, लेकिन उन्हें कभी दोषी नहीं ठहराया गया।

हिंदुत्व और सांप्रदायिकता
सावरकर की हिंदुत्व विचारधारा आज भी विवादों में रहती है। कुछ लोग उन्हें हिंदू राष्ट्रवाद का जनक मानते हैं, तो कुछ उनकी विचारधारा को सांप्रदायिक मानते हैं। उन्होंने धर्मनिरपेक्षता और मुस्लिम लीग की राजनीति का विरोध किया, जिससे वे कई बार आलोचना के केंद्र में रहे।

अंतिम दिन और मृत्यु
सावरकर ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में 'आत्मार्पण' (स्वेच्छा से मृत्यु) का मार्ग चुना। उन्होंने 1 फरवरी 1966 से अन्न-जल त्याग दिया और 26 फरवरी 1966 को मुंबई में उनका निधन हो गया।

विनायक दामोदर सावरकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक, विचारक, लेखक और समाज सुधारक थे। उनकी हिंदुत्व विचारधारा, क्रांतिकारी भूमिका, और साहित्यिक योगदान आज भी भारतीय राजनीति और समाज में गहरे प्रभाव छोड़ते हैं।
उनका जीवन प्रेरणा, संघर्ष, विचारधारा और विवादों का अद्वितीय संगम है।